Thursday, April 9, 2020

पूर्वी गीतों के पुरोधा- महेंद्र मिसिर



हलुवंत सहाय की हवेली में आस- पास के जमींदार, हुक्मरान आदि पधार चुके थे। साजींदो ने अपनी जगह ले ली । रक्कासा घूँघट काढ़े बैठी थी। कमबख्त तबलची गांजे के सोट की खोज में कहीं गुम हो गया। मेहमान अधीर हो रहे थे और जमींदार साहब आग- बबूला। एक युवक ने आगे बढ़कर विनम्र भाव से जमींदार साहब से तबला बजाने की अनुमति मांगी। सहर्ष अनुमति मिलते ही तबले की गड़गड़ाहट से महफिल थिरक उठी। रक्कासा ने घूँघट उठाते स्वर लिया
https://drive.google.com/file/d/1tDks9AmiXTtaBDRC-nFxVRPXAPZZ_Aex/view?usp=sharing